🌙 कुलधरा – रेत में दबी परछाइयाँ
कुलधरा गाँव का परिचय
राजस्थान के थार रेगिस्तान में स्थित कुलधरा, एक समय पालीवाल ब्राह्मणों का सम्पन्न गाँव था। यहाँ की हवेलियाँ, चौड़ी गलियाँ और पानी के कुंए इस गाँव को खास बनाते थे।
राजस्थान के थार रेगिस्तान में, लहराते रेत के टीलों के बीच बसा था एक सम्पन्न गाँव – कुलधरा।
यहाँ की गलियाँ चौड़ी, हवेलियाँ सुंदर, और लोग मेहनती व आत्मनिर्भर थे। कहा जाता है कि कुलधरा के पालीवाल ब्राह्मण अपने खेतों में ऐसा अनाज उगाते थे जो सालों तक खराब न हो। गाँव में हर घर के आँगन में मीठे पानी का कुआँ था — जो रेगिस्तान में किसी चमत्कार से कम नहीं।
लेकिन शांति की उम्र हमेशा लंबी नहीं होती…
एक दिन जैसलमेर का अत्याचारी दीवान, सालिम सिंह, गाँव आया। उसने सरपंच की बेटी, चंद्रकला, को देखा — उसकी आँखों में रेत पर चमकते चाँद जैसी शीतलता थी। दीवान ने संदेश भेजा –
"उसे मेरी बेगम बना दो, वरना गाँव का पानी सूख जाएगा और कर इतना बढ़ा दूँगा कि साँस लेना भी महँगा लगेगा।"
गाँव के बुज़ुर्ग एक रात चौपाल में इकट्ठा हुए।
दीपक की मद्धम लौ में उनके चेहरे गंभीर थे। सब जानते थे कि दीवान की बात टालना, मौत को बुलाना था… लेकिन बेटी की इज़्ज़त से बड़ा कोई करार नहीं।
निर्णय हुआ – गाँव खाली कर देंगे।
पर यह कोई साधारण विदाई नहीं थी। आधी रात को, बिना ढोल-नगाड़ों, बिना विदाई के आँसुओं, हर घर का दरवाज़ा खुला… और रेत में पदचिन्ह छोड़ते-छोड़ते लोग अँधेरे में खो गए।
जाने से पहले, गाँव के पुजारियों ने मंदिर में एक दीपक जलाया और एक शाप फूँका –
"कुलधरा में अब कोई नहीं बस सकेगा। जो बसेगा, वो यहाँ टिक नहीं पाएगा।"
अगली सुबह, जब दीवान अपनी फौज के साथ पहुँचा, तो हवेलियाँ वीरान थीं। दरवाज़े खुले, बर्तन रखे, पर चूल्हा ठंडा। बस हवा थी, जो गलियों में सीटी बजाती फिर रही थी।
तब से लेकर आज तक, कुलधरा सुनसान है। कभी-कभी यात्री कहते हैं, रात में किसी हवेली से धीमी हँसी की आवाज़ आती है… या कहीं आँगन में पायल बजती है। शायद चंद्रकला अब भी अपने गाँव की चौखट पर खड़ी, आने-जाने वालों को देख रही है।
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